जरूरत के हिसाब से "जिन्दगी" जिओ, ख्वाहिश के हिसाब से नहीं, क्योंकि जरूरत तो "फकीर" की भी पूरी हो जाती है, और ख्वाहिश, "बादशाह" की भी अधुरी रह जाती है..!!
जीभ में ही जहर है ,और जीभ में ही अमृत है ! अमृतमय ,मधुर वचन सबको मनोज्ञ लगते हैं , मधुर वचन से सारा संसार वश में हो जाता है , और मधुरभाषी का सर्वत्र सम्मान होता है !
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भोजन की भूख सीमित होती है और नाम की भूख असीम । भोजन की भूख दो बार लगती है, नाम की भूख चौबीसों घण्टे बनी रहती है । अध्यात्म के पथ में बाधा, भोजन की भूख नहीं नाम की भूख है । नाम की भूख से बचो, वरना अध्यात्म से वंचित रहना पड़ेगा !
भाग्य और पुरुषार्थ की तुलना ताश के खेल से की जा सकती है.. ताश के खेल में अच्छे या बुरे पते आना हमारे भाग्य के फल के सामान है, परन्तु उन पत्तों से हम किस प्रकार खेलते हैं, यह हमारे पुरुषार्थ के सामान है..